दोहा दोहा
लोभ मोह जो त्याग दे, वो साधक बन जाय।। लोभ मोह जो त्याग दे, वो साधक बन जाय।।
जिस हृदय प्रेम नहीं, वह जीवन बेकार! जिस हृदय प्रेम नहीं, वह जीवन बेकार!
ये कुण्डलिया छंद, मर्म को खोल बताये। ये कुण्डलिया छंद, मर्म को खोल बताये।
काव्य रचूँ ऐसा मधुर, जो जग को हर्षाय।। काव्य रचूँ ऐसा मधुर, जो जग को हर्षाय।।
सबकुछ अपना छोड़ के, घर से बेहद दूर सबकुछ अपना छोड़ के, घर से बेहद दूर